Maharashtra Women_620

मुंबई: 31 जनवरी, 2019 को, अंतरिम बजट सत्र 2019 के दौरान संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि केंद्र सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के तहत, भारत के 116,000 गांवों को डिजिटल रूप से जोड़ा गया है, 40,000 ग्राम पंचायतों में वाईफाई हॉटस्पॉट और सभी ग्राम पंचायतों में संयुक्त रुप से 212,000 कॉमन सर्विस सेंटर हैं।

महाराष्ट्र के पालघर जिले में इस तरह की एक पहल, डिजिटल बुनियादी ढांचे को उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है । मुख्य उद्देश्य है, ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को डिजिटल साक्षरता प्रदान करना, ताकि वे ऑनलाइन उपलब्ध सरकारी सुविधाओं और सेवाओं तक सीधे पहुंच बना सकें।

अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के तहत मुंबई स्थित एक स्वतंत्र शोध समूह, ‘अर्बन नौलेज एक्शन एंड रिसर्च’ ( पुकार ) महाराष्ट्र के आदिवासी गांवों में डिजिटल साक्षरता और ई-गवर्नेंस की पहुँच बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।

हाल ही में बनाए गए पालघर जिले का मुख्यालय- पालघर, महाराष्ट्र के राज्य की राजधानी मुंबई से 100 किमी उत्तर में स्थित है।यह जिला तीन जातीय समूहों का घर है - कृषि, कुन्बी (अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच), और आदिवासी। पहले के दो समूह बड़े पैमाने पर जमीन के मालिक हैं, जबकि आदिवासी, जो 35 फीसदी आबादी का गठन करती है, कृषि श्रमिक के रूप में काम करते हैं। पालघर जिले के प्रत्येक गांव में आदिवासियों के लिए एक अलग टोला है, जिसे पाडा कहा जाता है। इन पाडों में गांव के बाकी हिस्सों में उपलब्ध इन्फ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं का अभाव है।

2014 में ग्रामीण पालघर जिले में शुरू की गई एक परियोजना के माध्यम से, ‘पुकार’ डिजिटल जागरूकता और साक्षरता बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। 1992 के संविधान के 73 वें संशोधन की समझ में सुधार करना ( जो पंचायतों और ग्राम सभाओं सहित ग्राम स्तर की स्व-सरकारी संस्थाओं को सशक्त बनाता है ) और स्थानीय युवाओं को ‘ई-सेवकों’ के रूप में प्रशिक्षित करना, जिससे ग्रामीणों को ई-गवर्नेंस के माध्यम से सरकारी लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।

‘पुकार’ का उद्देश्य विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के तहत ग्रामीणों को उससे होने वाले लाभों को सुरक्षित रखने और पंचायतों और ग्राम सभाओं में उनकी भागीदारी बढ़ाने सहित महिलाओं के उत्थान पर जोर देने के साथ, उनके अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक बनने में मदद करना है।

आदिवासी गांवों में डिजिटल साक्षरता का विस्तार

पालघर पायलट प्रोजेक्ट बहडोली गांव में शुरू हुआ था, जहां 75 फीसदी आबादी आदिवासी है। यह गांव, मुंबई महानगर से केवल 80-100 किलोमीटर दूर है, लेकिन ऑनलाइन उपलब्ध मूलभूत सेवाओं तक पहुंच की कमी है, जैसे आधार कार्ड सुधार या कर विवरणी दाखिल करने के लिए स्थायी खाता संख्या (पैन) के साथ आधार आईडी लिंक करना, और कुकिंग गैस सब्सिडी और बैंकिंग सेवाओं पर पहुंच की कमी, जैसा कि ‘पुकार’ की प्रोग्राम डायरेक्ट किरण सावंत और एसोसिएट डायरेक्टर, श्रुतिका शितोले ने बताया है।

‘पुकार’ ने पालघर के 14 गांवों में से प्रत्येक में एक कंप्यूटर कियोस्क स्थापित किया और महाराष्ट्र सरकार की आपले सरकार (आपकी सरकार) की ई-गवर्नेंस वेबसाइट पर उपलब्ध सरकारी सुविधाओं और योजनाओं का उपयोग करने के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने के लिए 'ई-सेवकों' को प्रशिक्षित किया जैसे कि आधार कार्ड के लिए पंजीकरण करना और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार को पैन से जोड़ना। पंचायत कार्यालय में कियोस्क स्थापित किए जाते हैं और गांव के निवासी जब चाहें उनका उपयोग कर सकते हैं।

‘पुकार’ ने ई-सेवियों को प्रशिक्षित करने के लिए विभिन्न प्रिंट और वीडियो मॉड्यूल विकसित किए, जो ऑनलाइन सेवाओं तक पहुंचने के लिए चरण-दर-चरण जानकारी प्रदान करते हैं। ये ई-सेवक घर-घर जाते हैं और स्वयंसेवक शिविर चलाते हैं, जबकि पंचायतें फर्नीचर और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करती हैं।

अक्टूबर 2018, तक, 31 गांवों में 64 ई-सेवक सक्रिय थे, जहां प्रशिक्षित इनोवेटरों और समन्वयकों के साथ, उन्होंने 30,000 से अधिक ग्रामीणों को सरकारी सेवाओं के बारे में जानकारी हासिल करने में मदद की थी। लक्ष्य है युवाओं को और बदले में गांव को आत्मनिर्भर बनाना।

ये ग्रामीण शासन, खेती, आवास, सब्सिडी और सरकारी प्रमाणन से संबंधित 65 से अधिक सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ग्रामीणों ने इन कियोस्क का उपयोग करके और तालुका कार्यालय तक की यात्राओं से बच कर कुल 4.8 करोड़ रुपये बचाए हैं ( 30,000 में से प्रत्येक उपयोगकर्ता के लिए लगभग 1,600 रुपये, ग्रामीण कृषि कार्यकर्ता के लिए मौजूदा मासिक न्यूनतम वेतन 1,525 रुपये से अधिक ), जैसा कि ‘पुकार’ की रिपोर्ट में बताया गया है।

लक्षित गांवों में ‘पुकार’ सामुदायिक सेवा कार्यक्रम भी आयोजित करता है, और ‘उन्नावती’ नामक एक सहकारी संस्था के साथ-साथ एक ई-गवर्नेंस हेल्पलाइन भी चलाता है। शासन से संबंधित किसी भी प्रश्न को 48 घंटों के भीतर देखा जाता है और हेल्पलाइन 80 से अधिक गांवों तक पहुंचती है।

इन आदिवासी गांवों में एक बड़ी चिंता सतबारा, या भूमि रिकॉर्ड तक पहुंच है। यह 13 फरवरी, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विशेष रूप से प्रासंगिक है, जिसमें महाराष्ट्र सहित 16 राज्यों में वनभूमि से हजारों स्वदेशी वनवासियों और आदिवासी परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया गया है। ‘पुकार’ परियोजना के माध्यम से, पालघर के 31 गांवों में 1,875 आदिवासी अपने भूमि के रिकॉर्ड तक पहुंचने में सक्षम हुए हैं, जो कि बेदखली से छूट प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

‘पुकार’ की समुदाय-आधारित सहभागिता कार्रवाई अनुसंधान की कार्यप्रणाली ने स्वयं सहायता समूहों की 360 महिलाओं को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) में प्रशिक्षण के माध्यम से डिजिटल रूप से सक्षम बनाने में मदद की है। ये महिलाएं अब अपने बिजली के बिलों का भुगतान करती हैं और अपने सातबारा रिकॉर्ड को ऑनलाइन देख पाती हैं। 500 से अधिक स्कूली बच्चों ने भी आईसीटी प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

महिला सशक्तीकरण

तंदलवाड़ी के आदिवासी गांव में, इंडियास्पेंड ने छह युवतियों से मुलाकात की, जिन्होंने दो साल से अधिक समय तक ई-सेवक प्रशिक्षण प्राप्त किया। अब वे इनोवेटर्स हैं, जो अन्य ई-सेवकों की निगरानी करते हैं और ग्रामीणों जैसे कि उन्नत्ति जैसे सहकारी समितियों को बनाने में मदद करते हैं।

ये युवतियां कई तरह के काम करती हैं, पंचायत से लेकर मुद्रण पुस्तिकाओं तक जागरूकता और पंजीकरण शिविर आयोजित करने की अनुमति प्राप्त करने से लेकर, जागरूकता फैलाने और शिविरों के संचालन तक। ई-सेवकों ने महिलाओं को पंचायत स्तर के चुनाव लड़ने और ग्राम सभा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया है।

वे एक फोटोकॉपियर मशीन को गांव से दूसरे गांव तक ले जाती हैं। एक इन्नोवेटर, वैशाली बताती हैं, “ज़ेरॉक्स मशीन लोगों को समय और पैसा बचाने में मदद करती है। अन्यथा, कुछ प्रतियों के लिए, किसी व्यक्ति को स्टेशन तक की यात्रा करनी होती है। हम पासपोर्ट के आकार की तस्वीरों को प्रिंट करके उनकी मदद भी करते हैं, जिससे उन्हें काफी पैसा बचता है। वे ऑनलाइन शॉपिंग के लिए भी फोन का इस्तेमाल करती हैं। हर घर में कम से कम एक स्मार्टफोन होता है।”

तंदुलवाड़ी की एक गृहिणी और ग्राम सभा में भाग लेने वाली, मनीषा नरेश गुरु के पास अपने नाम पर एक आधार कार्ड, पैन कार्ड, एक बैंक खाता है और एटीएम का उपयोग करती हैं। वह जानती है कि उसे अपने बिजली के बिल का भुगतान कैसे करना है, हालांकि यह थोड़ा कठिन है। मनीषा अपने परिवार के संपर्क में रहने के लिए व्हाट्सएप का उपयोग करती है और कुछ ऑनलाइन शॉपिंग साइटों को जानती है। वह तंदलवाड़ी में ग्राम सभा की सदस्य भी हैं और नियमित रूप से इसमें भाग लेती हैं। वह कहती हैं, “सभा में अच्छा लगता है। पंचायत सबकी बात सुनती है और काम कर के देती है। और कोई काम पेंडिग नहीं रहता है। "

मनीषा की साथी वंदना का कहना है कि अब वे गैस सब्सिडी को सुरक्षित ढंग से ले पाती हैं। उनके पास वोटर आईडी कार्ड है और उन्होंने ई-सेवियों से सटबरा रिकॉर्ड और पेंशन योजनाओं तक पहुंचने के बारे में सीखा है। मनीषा और वंदना गांव की अन्य कई आदिवासी महिलाओं में से हैं, जिन्होंने पुकार पालघर परियोजना शुरू होने के बाद एक बदलाव देखा है। मनीषा आगे कहती हैं, "ये लोग हमरे बच्चों को पढाते भी हैं।”

स्वयंसेवक बच्चों को पढ़ाते हैं, शिविरों का संचालन करते हैं और संविधान जैसे विषयों पर चर्चा करते हैं, जो ‘पुकार’ में काम करने का प्रभाव है। महिलाओं के लिए सशक्त ’उपकरण के रूप में डिजिटल साक्षरता का विचार लोकप्रिय है, जो डिजिटल सखी और इंटरनेट साथी जैसी पहल से स्पष्ट है। भारत भर की आदिवासी लड़कियों को उनके समुदायों के लिए ग्राम-स्तरीय डिजिटल युवा नेता बनने के लिए, फेसबुक ने हाल ही में एक पहल, गोल-गोइंग ऑनलाइन एज लीडर, की घोषणा की है।

‘पुकार’ के प्रयासों ने इस उपकरण को न केवल महिलाओं के लिए बल्कि आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्ग के ग्रामीणों के लिए भी उपलब्ध कराया है। वैशाली ने कहा, "ग्रामीणों को पता है कि किसी भी प्रश्न के लिए अब किसे संपर्क करना है।"

(बनर्जी, वडोदरा के एम.एस.यू में मास्टर ऑफ पॉलिटिकल साइंस की छात्रा हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 5 अप्रैल 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :